इंसान चाहे तो संगत का असर खुद पर नहीं
बल्कि खुद का असर संगत पर भी डाल सकता है।

संगत जैसी भी हो,
हम तो भई जैसे है वैसे ही रहेंगे।

इंसान दो चेहरे ले के घूमता है,
पहला उसका होता है, और दूसरा संगत का

अच्छी संगत से धीरे धीरे आपके विचारों में भी बदलाव आता है।

सफल होने के लिए अच्छी संगत होने के साथ साथ अच्छी सोच का होना भी बेहद जरुरी है।

बुरी संगत में बैठना खराब टाइम को न्यौता देना है।

बुरी संगत में वक्त के साथ साथ इंसान भी बर्बाद हो जाता है।

बेवकूफ इंसान भी अच्छी संगत में बैठने से खुद के विचारों में परिवर्तन ला सकता है।

अगर आपको बुरी संगत की लत लग गई,
तो आपको किसी दुश्मन की जरूरत नहीं है।

संगति अच्छी हो वरना ना हो।

हमारे भी कुछ असूल है, तभी तो बुरी संगत से हम थोड़ा दूर है।

संगत आपकी खराब होगी, सवाल आपके परिवार पर उठाए जाएंगे।

समय इतना भी सस्ता नहीं कि बुरी संगत के साथ बिताया जाए।

इतना ही संगती का असर होता तो गुलाब भी लोगों को चुभने लगता।

टाइम खराब है जनाब,
संगत बुरी नहीं है हमारी।

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